शिक्षा के लिए काम करने की जरूरत



देश में शिक्षा की स्थिति में सुधार के लिए 2009 में शिक्षा का अधिकार कानून लाया गया। कानून के तहत देश में प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त कर दिया गया। इसके जरिए प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया। हालांकि शिक्षा को लेकर भारत के संविधान के अनुच्छेद -45 में इस बात की व्यवस्था की गई थी कि 10 वर्षों के अंदर देश में शिक्षा से वंचित बच्चों के लिए अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा के लिए कानून बनाए जाएंगे। लेकिन दुर्भाग्यवश देश की आजादी के 57 सालों से ज्यादा वक्त बीतने के बाद इस कानून बन सका। हालांकि 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बाद इस क्षेत्र में काफी सुधार हुआ लेकिन स्थिति अभी भी ठीक नहीं कही जा सकती है। वर्तमान समय में देश के कई राज्यों में शिक्षा की स्थिति में व्यापक सुधार नहीं हुआ है।

कई राज्यों में राज्य सरकारें अभी इसको उदासीन रूख अपना रही हैं। शिक्षा समवर्ती सूची में आने की वजह से सरकारें एक-दूसरे पर दोषारोपण नहीं कर सकती। इसलिए इस क्षेत्र में केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर काम करने की जरूरत है। देश में बच्चों द्वारा शिक्षा में रूचि लेने की बात की जाए तो आंकड़े कुछ और ही कहते हैं।

वर्ष 1950-51 में देश में 34833 प्राथमिक और उच्च विद्यालय थे। इनमें करीब 2875260 बच्चें ही स्कूल जा रहे थे। जबकि उसी वर्ष में शिक्षकों की संख्या 84804 थी। यदि वर्तमान समय में शिक्षकों की संख्या की बात करें तो पाते हैं कि सिर्फ स्कूलों में ही नहीं बल्कि हमारें उच्चतर शिक्षण संस्थानों में भी शिक्षकों की भारी कमी है। ऐसे शिक्षा का लक्ष्य जो सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है शायद ही उसे प्राप्त किया जा सके। हालांकि सरकार ने शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए काफी प्रयास किये हैं।

इसके लिए सरकार ने प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बच्चों को स्कूल में निशुल्क शिक्षा के साथ-साथ पाठ्य पुस्तकों को निशुल्क वितरण की व्यवस्था की गई है। ताकि कोई भी गरीब का बच्चा किताबों के अभाव शिक्षा ग्रहण करने से वंचित न रहे। 2006-07 में बच्चों को पुस्तक वितरण के लिए सरकार ने 22 करोड़ की धनराशि की व्यवस्था की जिसमें में लगभग पूरी रकम खर्च कर ली गई लेकिन कोई व्यापक सुधार देखने को नहीं मिला। 

सरकार ने इसके साथ-साथ स्कूलों मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था और छात्रों के लिए छात्रवृति की भी व्यवस्था की गई। हालांकि सरकार के इस प्रयास में कुछ सामाजिक कारण भी हैं जो इसमें रूकावट पैदा कर रही है। संपूर्ण शिक्षित समाज का सपना तभी पूरा हो पायेगा जब सरकारों के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर भी जागरूकता पैदा हो। इसके लिए सरकारों को समाज में परिवर्तन लाने के लिए लोगों को जागरूक करने की जरूरत है और शिक्षा को ज्यादा तेजी से प्रसार-प्रचार करने की जरूरत है। तभी हम संपूर्ण शिक्षित समाज की कल्पना को स्वीकार कर पाएंगे। 

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