शिक्षा का अधिकार अधिनियम: बच्चों का हक दिलाता, उसका भविष्य संवारने वाला अधिनियम



भारत में शिक्षा का अधिकार के अंतर्गत देश के सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिया गया है। भारत सरकार देश में 18 साल से कम उम्र के बच्चों के शिक्षा के लिए कई योजनाएं भी चलाती है। जिसमें मिड-डे मिल जैसी योजनाएं शामिल है। बच्चों को अनिवार्य शिक्षा देने के उद्येश्य से भारत सरकार ने 86वां संविधान संशोधन के जरिए 2002 के अनुच्छेद 21क में अधिकार दिया है। इसे मौलिक अधिकार में शामिल किया गया है। यह अधिनियम 6 से 14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का प्रावधान करता है। इस अधिनियम को आरटीई भी कहा जाता है। 

इस अधिनियम के अनुसार, देश में 6 से 14 वर्ष के बच्चों को संतोषजनक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देश के प्रत्येक बच्चों का मौलिक अधिकार है। शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद इस क्षेत्र में लोगों में एक परिवर्तन भी देखा गया। लोगों के अंदर हुई जागरूकता का ही असर है कि अब हर माता-पिता अपने बच्चों का अच्छी शिक्षा दिलाना चाहता है। आरटीई अधिनियम 1 अप्रैल 2010 को देश में लागू हुआ। इस अधिनियम के अंतर्गत बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने की व्यवस्था की गई। 

इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार और राज्य सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि राज्य और देश के सभी बच्चों निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा मिले। इस अधिनियम के अतंर्गत 6 से 14 वर्ष के बच्चों से किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता है। यह अधिनियम भारत सरकार और संबंधित राज्य सरकार को बाध्य करती है कि इस उम्र के बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा मिले। 

इस अधिनियम के अंतर्गत बच्चों के निम्नलिखित सुविधाएं प्राप्त होती है-

  1. इस अधिनियम के अंतर्गत बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा पूरी तरह निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया है। 
  2. यह अधिनियम इस बात को भी स्पष्ट करता है कि 6 से 14 वर्ष के बच्चों निशुल्क शिक्षा दी जाएगी। इसके लिए बच्चे या उसके पैरेंट्स किसी भी प्रकार की फीस या प्रभारों को अदा करने के लिए उत्तरदायी नहीं है। 
  3. यह अधिनियम यह भी स्पष्ट करता है कि इसके लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारें वित्तिय मामलों को मिलकर देखेंगे। 
  4. इस अधिनियम में इस बात का भी उल्लेख है कि बच्चों की संख्या और शिक्षकों का अनुपात सही सही हो। इसके साथ-साथ विद्यालय में शिक्षकों की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए शिक्षकों को दसवर्षीय जनगणना, राज्य विधानसभा चुनाव, संसद चुनाव और आपदा राहत के साथ-साथ स्थानीय प्राधिकरण के कार्य को छोड़कर किसी अन्य कार्य में नहीं लगाया जा सकता। 
  5. इस अधिनियम की खास बात यह है इसमें शिक्षकों द्वारा बच्चों का शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न, प्रति वयक्ति शुल्क, शिक्षकों द्वारा निजी ट्यूशन चलाना और बिना मान्यता के स्कूलों को चलाने से रोकता है। इस अधिनयम के तहत ऐसा करना अपराध की श्रेणी में रखा गया है। 
  6. इस अधिनियम के अंतर्गत शिक्षकों की नियुक्ति पूरी जांच-पड़ताल के साथ की जाएगी ऐसा सुनिश्चित किया गया है। इसी प्रकार अन्य जरूरी चीजों को इस अधिनियम में समाविष्ट किया गया है। 
इस अधिनियम के लागू होने के बाद भारत में बच्चों को अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा दी जा रही है। सरकार ने इसे पूरी तरह से सभी राज्यों में लागू कर दिया है। हालांकि समय-समय पर कुछ घटनाएं सरकारी मशीनरी पर सवाल खड़ी करती है लेकिन फिलहाल कुल मिलाकर अधिनियम के लागू होने के बाद देश में शिक्षा के स्तर बहुत बदलाव आया है। बच्चों की स्कूलों में उपस्थिति बढ़ी है। मध्याहन भोजन इस अधिनियम की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। इस अनिवार्य शिक्षा अधिनियम में अगर कुछ खामियों को दूर कर लिया जाए तो यह देश की तकदीर बदलने की क्षमता रखता है।

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