वर्तमान भारतीय राजनीति और छात्र


भारत प्रचीनकाल से ही शिक्षा का प्राचीनतम और वैभवशाली केंद्र रहा है। कालांतर में भारत ने दुनिया को दृष्टि देने का महत्वपूर्ण काम किया है। जब हम मध्यकालीन भारत के शिक्षा केंद्रों की बात करते हैं तो हमारे सामने अनेक भारतीय विश्वविद्यालय का नाम सामने आता है, जिसमें विक्रमशिला और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय विश्व विख्यात थे। इन विश्वविद्यालयों ने भारत की कांति और भारतीय संस्कृति और शिक्षा व्यवस्था को पूरे विश्व में फैलाया। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में छात्र राजनीति व्यवस्था में अहम घटक रही है।


देशभर के तमाम विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति को महत्वपूर्ण मानते हुए स्थान दिया गया है। लेकिन आज के समय में देश की शिक्षा में राजनीति का दखल कुछ ज्यादा ही हो गया है। हाल ही में देश के कुछ शिक्षण संस्थानों में राजनीति का व्यापक रूप देखने को मिला। लेकिन क्या शिक्षा में राजनीति सही है। वैसे तो जेएऩयू, डीयू, एएमयू इत्यादि विश्वविद्यालयों ने देश को अनेक राजनेता दिए हैं लेकिन जो राजनीतिक दौर विश्वविद्यालयों में आज शुरू हुआ है उसे भारतीय विश्वविद्यालयों के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता है।

हालांकि देश की आजादी में छात्रों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। चाहे वो पटना का सात शहीद हो या फिर दिसंबर 1973 के गुजरात के मोरबी इंजीनियरिंग कॉलेज में भोजन बिल वृद्धि के खिलाफ आंदोलन जो कि बाद में नवनिर्माण आंदोलन का रूप ले लिया था। यह आंदोलन आजाद भारत का पहला सबसे बड़ा छात्र आंदोलन था।

लेकिन आज जो देश में छात्र राजनीति के नाम पर हो रहा है उसे शिक्षा के साथ-साथ राजनीति के लिहाज से ठीक नहीं कहा जा सकता। हाल ही में जेएनयू में राष्ट्र विरोधी नारे लगने के बाद आरोपी छात्रों को गिरफ्तार किया गया था। जिसको लेकर देश में तमाम राजनीतिक पार्टियों ने सरकार के खिलाफ अपना विरोध-प्रदर्शन का नंगा नाच किया। राजनीतिक पार्टियां देश की चिंता छोड़ राष्ट्र विरोधी ताकतों के समर्थन में प्रदर्शन करते हैं जो ठीक नहीं है। एक स्वच्छ राजनीति को राष्ट्रविरोधी तत्वों से दूरी बनाकर रखना चाहिए। इसे नियंत्रित करना सरकार का काम है।

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