प्राथमिक शिक्षा के गिरते स्तर से तबाह होता बचपन


देश में प्राथमिक शिक्षा की हालत बेहद ही खराब है। प्राथमिक शिक्षा के लिए देशभर में सरकार द्वारा अनेक योजनाएं चलाई जा रही है। लेकिन फिर भी प्राथमिक स्तर के शिक्षा की स्थिति को दुर्भाग्यपूर्ण कहा जा सकता है। प्राथमिक शिक्षा में इस गिरावट के पीछे क्या- क्या कारण हो सकते हैं। अगर शिक्षा की बात करें तो हम पाते हैं कि प्राथमिक शिक्षा ही किसी व्यक्ति के जीवन की नींव होती है। इसी पर उस व्यक्ति का संपूर्ण भविष्य तय होता है। अगर प्राथमिक शिक्षा की स्थिति इतनी बुरी हो तो बच्चे की भविष्य की चिंता आप नहीं कर सकते। भारत देश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में बना।


इस अधिनियम में इस बात का प्रावधान किया गया कि हर बच्चे को प्राथमिक शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश अधिनियम के लागू होने के बाद भी स्थिति में व्यापक सुधार नहीं हो पाया है।

शिक्षा स्तर में गिरावट और बच्चों का इस ओर रूझान में कमी के निम्नलिखित कारण हो सकते है।
1.) विद्यालय में प्राथमिक शिक्षकों की भारी कमी। 
देश के प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी है। अब कल्पना कीजिये कि जिस विद्यालय में शिक्षक ही नहीं हो वहां के बच्चों की स्थिति क्या होगी। साथ ही कौन माता-पिता ऐसी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना पसंद करेंगे। देश में अभी कुल 13.62 लाख प्राथमिक विद्यालय हैं। लेकिन जो बात चौकाने वाली है वो ये कि इन विद्यालयों में सिर्फ 41 लाख ही शिक्षक हैं।
2.) लचर आधारभूत संरचना। 
प्राथमिक स्तर के शिक्षा की बात करें यहां पर भी मुश्किलें कम नहीं है। देश में सरकारी स्कूलों को छोड़ भी दें तो निजी स्कूलों की स्थिति भी ठीक नहीं कही जा सकती है। एक छोटे से कमरे में स्कूल चलाने आपके बच्चों को क्या शिक्षा देंगे। अगर सरकारी और प्राइवेट स्कूलों की बात करें तो दोनों जगह कमोबेश एक जैसी ही स्थिति है। निजी स्कूल सुविधाओं के नाम पर आप की पैसे ऐठते हैं तो सरकारी स्कूल की हालत किसी से छुपी नहीं है। कई प्राथमिक स्कूलोंं में बच्चों के बैठने तक की व्यवस्था तक नहीं है। बच्चे जमीन पर बैठ कर शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर है।
3.) लड़कियों के लिए स्कूल में शौचालय की कमी। 
देश के ज्यादातर प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च विद्यालयों में लड़कियों के लिए प्रयाप्त शौचालय की व्यवस्था नहीं है। अगर आंकड़ों की बात करें तो देश में कुल 31 फीसदी प्राथमिक विद्यालयों में शौचालय की व्यवस्था नहीं है। इस कारण माता-पिता अपने बच्चियों को स्कूल जाने से रोक देते हैं। दूसरी ओर देश में 69 फीसदी विद्यालयों में शौचालय की व्यवस्था तो हैं लेकिन साफ-सफाई नहीं होने की वजह से ये प्रयोग लायक नहीं है।
4.)  मध्यवर्ग का निजी स्कूलों की तरफ बढ़ता रूझान
सरकारी स्कूलों की गिरती साख के कारण अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाने को मजबूर हैं। इसका दुष्प्रभाव गांव की गरीब और असहाय पर हो रहा है। एक तरफ सक्षम माता-पिता के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ाई कर अपना भविष्य बना रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर एक गरीब का बच्चा आर्थिक अभाव में पढ़ाई छोड़कर खेत-खलिहान में काम करने को मजबूर हैं। यूनेस्को ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में सबसे ज्यादा व्यस्क निरिक्षर हैं। राज्य सरकारों की उदासीनता के कारण गरीब और अमीर के बीच शिक्षा की खाई दिनों-दिन और चौड़ी होती जा रही है।

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