भारतीय विश्वविद्यालय शोध के क्षेत्र में धीरे-धीरे पिछड़ती जा रही है। विश्व के मानको पर यहां के विश्वविद्यालय खड़ा नहीं उतर पा रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में विश्व स्तर पर हुए शोध ने भी यहां के विश्वविद्यालयी शोध पर सवाल खड़े किए हैं। अभी हाल में टाइम्स के द्वारा जारी किए गए 200 उच्चतर संस्थाओं की सूची में भारत का एक भी संस्थान नहीं है। रिसर्च के इस गिरते स्तर पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने भी चिंता जाहिर की। इसका मुख्य कारण 1991 में लागू हुए आर्थिक सुधारों के कारण उच्च शिक्षा को नजरअंदाज कर दिया जाना है।
इस कारण हम दुनिया में हो रहे शोध कार्यों के मामले में पिछड़ते जा रहे है। साथ ही सरकार भी यहां के विश्वविद्यालय को यू.जी.सी के जरिये नियंत्रित करती है। विश्वविद्यालय के हर प्रकार के कार्यों में सरकार और न्यायपालिका का दखल होता है। विश्वविद्यालय को कोई भी नया कोर्स शुरू करने से पहले सरकार या यूजीसी से मंजूरी लेनी पड़ती है। इससे विश्वविद्यालय के विकास में अनावश्यक रूप से बाधा पड़ता है। न्यायपालिका भी अपने फैसले से एक झटके में विश्वविद्यालय के किसी भी फैसले को रद्द कर देती है।
विश्वविद्यालय के कार्यों सरकार का यहां तक दखल है कि उसके समस्त फैसलों जैसे- शिक्षकों की नियुक्ति तथा उसके वेतन तक भी सरकार ही तय करती है। अब जब समय आ गया है कि सरकार को इसके सम्बन्ध में सकारात्मक विचार करना चाहिए उलटे सरकार “राष्ट्रीय शिक्षा आयोग” के गठन की बात कर रही है। जब सरकार के निर्णय के दायरे में कुछ संस्थान नहीं आ रहे है तो सरकार उसपर नियंत्रण स्थापित करने के उद्देश्य से इस आयोग के गठन का फैसला किया है।
इसका एक और सबसे बड़ा कारण है विश्वविद्यालय में शोध के लिए मौजूदा बुनयादी सुविधाओं के अभाव के साथ -साथ गाइड के द्वारा छात्रों को परेशान किया जाना भी है। गाइड शोधार्थी से शोध के स्थान पर अपने निजी काम भी करवाते है। संस्थानों में अच्छी सुविधायें नही होने के कारण भी युवा इसके तरफ जाना पसंद नहीं करते है। हमारे समाज में भी शोध को उचित नजर से नहीं देखा जाता है । छात्रों पर इस बात का दबाव भी दिया जाता है कि वो अपना करियर पर ध्यान दे न कि शोध पर। ऐसे में छात्र उच्च शिक्षा के तरफ ध्यान नहीं देते है।
2011 के एक रिपोर्ट में दुनिया भर में शोध कार्य पर 1435 अरब डालर खर्च किये गये। जबकि 2007 में भारत ने सिर्फ 24 अरब डालर खर्च किये। ये मात्र 2 प्रतिशत लगभग है पूरे विश्व का, जाहिर है अमेरिका जहां 30 प्रतिशत शोध पर खर्च करता है, भारत के द्वारा किया गया खर्च नगन्य हैं। भारत अपने जीडीपी का केवल 0.9 फीसदी ही शोघ पर खर्च करता है। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स के द्वारा किये गये रिसर्च में भारत 141 देशों की सूची में 64वें नम्बर पर है। इस कारण हमारे देश में वैज्ञानिकों की संख्या अन्य देशों के मुकाबले बहुत कम है।ऐसे में शोध के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद बेमानी है।
शोध में पिछड़ने का एक और कारण छात्र भी है। जो छात्र शोध के क्षेत्र में जाते भी है वो बस डिग्री के लेने के उद्देश्य से ही जाते है वो सिर्फ अपने काम से मतलब रखते है। वो एक गुणवत्तापूर्ण शोध पर ध्यान नहीं देते हैं।
अब वक्त आ गया है कि हमें इस ओर ध्यान देना चाहिए तभी हम एक बेहतर शिक्षा प्रणाली की ओर बढ़ सकते है।