उच्च शिक्षा में राजनीतिक दखल |
भारत हमेशा से ही उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दुनिया को ज्ञान बांटता रहा है। कभी हमारे देश में नालंदा, तक्षशिला, बिक्रमशिला जैसी विख्यात अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय हुआ करते थे। आज बस उसके अवशेष दिखते हैं। समय के साथ -साथ ये सभी ख्यातियाँ धूमिल पड़ती गई। लेकिन फिर भी कभी इसे उतना नुकसान नहीं उठाना पड़ा जितना आज के विश्वविद्यालय को उठाना पड़ रहा है। राजनीतिक दखल ने उच्च शिक्षा का बंटाधार कर दिया है।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत जो कभी शिक्षा का केंद्रबिंदु था आज वो कहीं खो गया है। उच्च शिक्षा में राजनीतिक दखल ने शिक्षा के हर एक क्षेत्र को प्रभावित किया है। देश के कई पुराने विश्वविद्यालय कभी शिक्षा के विख्यात केंद्र थे पर आज वो राजनीतिक अखाड़े का केंद्र बन कर रह गए हैं। विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा में गिरावट का मुख्य कारण उच्च शिक्षा में राजनीतिक दखल है।
उदाहरण के लिए, पटना विश्वविद्यालय का बी.एन.कॉलेज, पटना कॉलेज। आज यहाँ पढाई कम और राजनीति ज्यादा होती है। राजनीतिक दखल ने पटना विश्वविद्यालय के पठन-पाठन को बिगाड़ दिया है। मध्य प्रदेश का विश्वभारती विश्वविद्यालय कभी शिक्षा के उच्चतम शिखर पर था, पर आज उसकी स्थिति बहुत दयनीय है।
एक समय था जब कुलपति के बातों को राजनेता कभी टाल नहीं सकते थे और अब विश्वविद्यालय के उच्चाधिकारी राजनेताओं के लिए राजस्व उगाही का जरिया बन चुके हैं। उस वक़्त नेता बड़े ही आदर- भाव से कुलपति के बातों को स्वीकार करते थे। लेकिन जैसे-जैसे उच्च शिक्षा में राजनीति का वर्चस्व बढ़ता गया, शिक्षा का स्तर गिरता चला गया। आज भारत के हर उच्च शिक्षण संस्थानों में राजनीतिक दखल साफ तौर पर देखा जा सकता है।
एक समय था जब कुलपति के बातों को राजनेता कभी टाल नहीं सकते थे और अब विश्वविद्यालय के उच्चाधिकारी राजनेताओं के लिए राजस्व उगाही का जरिया बन चुके हैं। उस वक़्त नेता बड़े ही आदर- भाव से कुलपति के बातों को स्वीकार करते थे। लेकिन जैसे-जैसे उच्च शिक्षा में राजनीति का वर्चस्व बढ़ता गया, शिक्षा का स्तर गिरता चला गया। आज भारत के हर उच्च शिक्षण संस्थानों में राजनीतिक दखल साफ तौर पर देखा जा सकता है।
उच्च शिक्षा में राजनीतिक दखल |
जिस तीव्र गति से उच्चतर शिक्षण संस्थाओं की संख्या बढ़ी है उसी तीव्र गति से कुलपति के गरिमा में भी गिरावट आई है। विश्लेषकों के अनुसार, उच्च शिक्षण संस्थाओं में वृद्धि तो हुई है लेकिन उनके कुलपति एवं शिक्षा के गुणवत्ता के स्तर में भारी गिरावट आई है। राजनीतिक दखल ने विश्वविद्यालय के आतंरिक व्यवस्था में ही हलचल पैदा कर दिया है।
कुलपति राजनेताओं के साथ मिलकर विश्वविद्यालय के राजस्व के साथ छेड़ -छाड़ करने लगे हैं और अनैतिक कार्यों में संलग्न होने लगे हैं; जैसे:- जाली डिग्रियों की बिक्री, नियुक्ति एवं प्रवेश सम्बन्धी मामलों में धांधली तथा विश्वविद्यालय के पैसे का गबन। उदाहण के लिए:- 1997 में नागपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज में जाली डिग्री बेचने के मामले में कुलपति सहित समस्त उच्चाधिकारियों को इस्तीफा देना पड़ा था।
कुलपति राजनेताओं के साथ मिलकर विश्वविद्यालय के राजस्व के साथ छेड़ -छाड़ करने लगे हैं और अनैतिक कार्यों में संलग्न होने लगे हैं; जैसे:- जाली डिग्रियों की बिक्री, नियुक्ति एवं प्रवेश सम्बन्धी मामलों में धांधली तथा विश्वविद्यालय के पैसे का गबन। उदाहण के लिए:- 1997 में नागपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज में जाली डिग्री बेचने के मामले में कुलपति सहित समस्त उच्चाधिकारियों को इस्तीफा देना पड़ा था।
आज हमारे देश में तथाकथित सर्च - कमेटियों के होते हुए भी कुलपति नियुक्ति राजनितिक पहुँच का अखाड़ा बन चुका है। कुलपति के पद पर वही बैठते हैं, जिनकी पहुँच राजनितिक स्तर तक होता है। वास्तव में कुलपति नियुक्ति में हुए राजनीतिकरण के कुछ ख़ास कारण है। कुलपति राजनेताओं के लिए राजस्व उगाही का जरिया बन चुके हैं। राजनीतिक दखल ने कुलपति की गरिमा में भी जबरदस्त गिरावट को बढ़ावा दिया है।
उच्च शिक्षण संस्थानों के कुलपति नियुक्ति में राजनीतिक दखल ने स्थिति और भयावह कर दिया है। राज्य के साथ -साथ केंद्रीय विश्वविद्यालय में भी कमोवेश यही स्थिति है। उदहारण के लिए - अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल जमीरूद्दीन शाह है। इन्होंने पूरे विश्वविद्यालय को ही छावनी में तबदील कर दिया।
उच्च शिक्षा में राजनीतिक दखल का सबसे बड़ा उदाहरण दिल्ली के जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में देखा जा सकता है। यहां पर 1988 के बाद से जामिया मिलिया में 50 प्रतिशत कुलपति सेना से हैं या प्रशासनिक सेवा से। आज भारत के ज्यादातर उच्च शिक्षण संस्थानों में राजनीति चरम पर है। जहां नहीं है वहां भी छात्र चुनाव के नाम पर अक्सर की धांधली होती रहती है।
उच्च शिक्षा में राजनीतिक दखल |
उच्च शिक्षा में राजनीतिक दखल का सबसे बड़ा उदाहरण दिल्ली के जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में देखा जा सकता है। यहां पर 1988 के बाद से जामिया मिलिया में 50 प्रतिशत कुलपति सेना से हैं या प्रशासनिक सेवा से। आज भारत के ज्यादातर उच्च शिक्षण संस्थानों में राजनीति चरम पर है। जहां नहीं है वहां भी छात्र चुनाव के नाम पर अक्सर की धांधली होती रहती है।
राष्ट्रीय ज्ञान आयोग तथा यशपाल कमेटी के अनुसार कोई भी व्यक्ति कुलपति के पद के लिए तभी योग्य समझा जाएगा जब उसका नाम राष्ट्रीय रजिस्ट्री में शामिल होगा। हालांकि विश्लेषकों की राय में लगभग 700 उच्चतर शिक्षण संस्थाओं के लिए एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री बनाना आसान काम नहीं।
उच्च शिक्षा में लगातार बढ़ती राजनीतिक दखल के बाद सरकार ने कोठारी समिति का गठन किया। कोठारी कमेटी के रिपोर्ट के अनुसार, "कुलपति पद उसी व्यक्ति को देना चाहिए जो इसके योग्य हो, अगर इस प्रकार के लोगों का अभाव है तो वैसे लोगों को पद नहीं बाँटने चाहिए जो इसके योग्य नहीं। दुर्भाग्यवश आजतक इस दिशा कभी बात नहीं की गयी तथा इन सिफारिशों को लागू नहीं किया जा सका।