शिक्षा गरीबों का भी या फिर ये सिर्फ अमीरों की रखैल?


देश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में युवाओं की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है लेकिन सरकारें उच्च शिक्षा में बढ़ती जरूरतों को पूरा करने में असफल हो रही हैं। यूनेस्को की हाल ही आई रिपोर्ट में कहा गया कि 2014 तक विश्वविद्यालयों में छात्रों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि दर्ज की गई है। यह वृद्धि पहले की संख्या के मुकाबले दोगुनी होकर 20 करोड़ 70 लाख हो गई है। लेकिन इसके बावजूद सभी छात्रों को समान अवसर और संसाधन नहीं मिलते हैं। आज देश में शिक्षा इतनी महंगी हो गई है कि एक साधारण परिवार में पला-बढ़ा बच्चा चाहकर भी उच्चतर शिक्षा के बारे में नहीं सोच सकता है। बहुत से परिवार अपने बच्चों को शिक्षा तो दिलाना चाहते हैं लेकिन इस क्षेत्र में महंगी होती शिक्षा उनके सपनों पर पानी फेर देते हैं।
वो चाहकर भी अपने बच्चों को बाहर शिक्षा ग्रहण करने नहीं भेज पाते हैं।

इस रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि अत्यंत गरीब छात्रों में महज एक फीसदी छात्र ही विश्वविद्यालयों में चार से ज्यादा का वक्त गुजार पाते हैं। वहीं इसके विपरीत धनी परिवार के बच्चों का प्रतिशत 20 फीसदी है। यह इतना अंतर है कि देश में उच्च शिक्षा में समान शिक्षा देने के उद्देश्य को मुह चिढ़ाता नजर आता है। कई गरीब बच्चे पढ़ाई में तेज तो होते हैं और वे आगे की शिक्षा को हासिल भी करना चाहते हैं लेकिन उन्हें पता चलता है कि जिस शिक्षा को वो हासिल करना चाहता है उसकी कुल कीमत 4 से 10 लाख तक है तब उस बच्चे का पैर जमीन पर अटक जाता है। उसके सपने वहीं चूर-चूर हो जाते हैं। उनके आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है। वह कुछ भी सोचने की स्थिति में नहीं होता। वह अपने आप को धिक्कारता है कि वह एक गरीब घर में पैदा हुआ है। 

हाल के कुछ महीनों, सालों में भारत के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में फीस में बेहताशा वृद्धि हुई है। पहले आईआईटी और फिर आईआईएम जैसे संस्थानों में भी फीस बढ़ा दी गई। इस फीस बृद्धि पर सरकार की दलील थी कि बेहतर मैनेजमेंट के लिए धन की आवश्यकता है और विश्वविद्यालयों को अपने तरीके से भी धन का उपार्जन करना चाहिए। सरकार की यह भी दलील थी कि विश्वविद्यालय के रख रखाव में ज्यादा खर्च हो रहे हैं और सिर्फ सरकार उसका खर्च वहन करने में सक्षम नहीं है। फीस वृद्धि के बाद जहां आईआईटी में पहले 50 हजार थी उसे बढ़ाकर लगभग दोगुना 90 हजार कर दी गई। वहीं प्रबंधन के संस्थानों ने अपनी फीस वृद्धि में तीन गुणा तक की वृद्धि कर दी। विश्विविद्यालय फीस बढ़ाने के लिए मजबूर हैं क्योंकि सरकार ने अपने हाथ वापस ले लिए हैं। सरकार का कहना है कि विश्विविद्यालय अपने संसाधन स्वयं जटाएं। 
देश की उच्चतर शिक्षा, सुविधाएं, अभाव और निजीकरण
इस संस्थानों में फीस वृद्धि के बाद गरीबी में जीवन बसर करने वाले छात्रों के लिए यहां पर दरवाजे लगभग बंद हो गए हैं। यहां पर सिर्फ गरीब छात्र ही नहीं बल्कि मध्यम वर्गीय छात्रों को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। यदि वो शिक्षा लोन के लिए दरवाजे खटखटाते हैं तो उसकी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि वो वहां पर भटकना ही नहीं चाहता है। इससे बेहतर वो अपना रास्ता बदल लेना समझते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं यदि आपको शिक्षा के लिए ऋण मिल भी जाता है तो उसके भुगतान की प्रक्रिया भी काफी जटिल है। 

अब यदि इन टॉप के संस्थानों के फीस वृद्धि को छोड़ भी दें तो वहां तक पहुंचने के लिए पहले आपको काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। यदि आप आईआईटी या आईआईएम से पीएचडी करना चाहते हैं तो पहले तो आईआईटी के छात्र ही आपका रास्ता रोके खड़े दिखाई देंगे। क्योंकि यहां पर ज्यादातर टॉपर आईआईटी के ही होते हैं। यदि आप अलग से ट्यूशन में काफी खर्च कर यहां तक पहुंच भी जाएंगें तो आप फीस की बात सुनकर अंदर जाने की हिम्मत नहीं होगी। विश्वविद्यालयों की फीस ही आपको रोक देगी। 

यदि भारत के विश्वविद्यालयों की तुलना बाहर के विश्विविद्यालय से करें तो हम पाते हैं कि बाहर के विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान ही आपको कहीं न कहीं पार्ट टाइम जॉब मिल जाती है जिससे कि विदेशों में विश्वविद्यालयों का सेमेस्टर फीस चुकाना मुश्किल नहीं होता है लेकिन भारत में ऐसी स्थिति नहीं है। यहां पर विश्वविद्यालय आपसे फीस तो लेना जानते हैं लेकिन आपके लिए कुछ करना नहीं जानते। 
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इन संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों को यहां से निकलने के बाद करोड़ों का पैकेज मिलता है लेकिन इससे पहले उसे पानी की तरह पैसों को बहाना पड़ता है और जो सक्षम है वही इतने पैसे बहा सकता है। यानि तात्पर्य यह है कि यदि आप गरीब है तो गरीब ही रहें। आपको इससे आगे बढ़ने की जरूरत नहीं है क्योंकि आगे बढ़ने के रास्ते आपके लिए बंद हैं या फिर धीरे-धीरे बंद होते जा रहे हैं। ऐसे में सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए कि छात्रों को योग्यता के आधार पर उच्च शिक्षा में मौका मिले। इससे हमारे शिक्षण संस्थानों के गुणवत्ता में भी वृद्धि होगी और सभी छात्रों को समान अवसर भी मिलेंगे।

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